In this Grey haze I hope to prospect a view, Life's achromatic maze paint red gold and blue.
Saturday, January 10
OK
ओके बोलेतो ठिक।
ओके बोलेतो अंगरेजी।
वैसे हिन्दी में भी ओके बोला जाता है - आज कल तो हिन्दी बोलनेवाला ज्यादा अंगरेजी, कम हिन्दी बोलता है।
पर ज्ञाने भी दो यारों। ओके!
मैं यहाँ अकेला पडा हुं। न जानू मै किस पाप की सजा भुगत रहा हुं। क्या करूं मैं? किस से जाकर कहुं? कहूँ भी तो क्या कहूं?
आज माँ की बड़ी जबरदस्त याद आ रही है। जब ज़िंदा थी तो उसको बहुत कष्ट दिए मैंने। जब चल बसी तो मैं उसके पास भी न रह सका था। जो कर्म के भोग भुगतने थे वे जब भुगतने थे तब नहीं भुगते जिसकी बदौलत आज यह दिन देखना पड़ रहा है। जिन दोस्तोंने मुझे प्रेम और विश्वास दिया उनको मैंने उनकी जरूरत के समय सहाय नही किया। जन्म भर तत्वज्ञान ही बोलता रहा बोलता रहा, इतना की पलभर रूककर यह कभी नहीं सोचा की जीवन का बुनियादी बल तत्त्वज्ञान नहीं पर दुनियादारी की मज़बूत बुलंदी होती है। बस, दुनियादारी नही समझ सका।
अब पछतानेसे बीती घड़ी वापस नहीं आनेवाली है। यहाँ से आगे शायद इस सबक से मार्गदर्शन प्राप्त हो। एक जरूर याद रखुँगा की दूसरेके काम आऊँगा तो निजी जीवन की दुर्दशा नही होगी।
बात वेदना की नही है, पर बात है संवेदना की, एक दूसरेको सहायता लेने देने की, न सीर्फ लेने की, पर देने की भी। क्यों कि कोईभी व्यक्ति एकलः बेट नही है। आदमी एक अविरत, अविराम चलने का नाम है। स्वार्थी मनुष्य उस एकलः बेट कि भांति एक कटी-टूटी जिंदगी जीता है। जिंदगी जीता है यह एक कहने मात्र की बात है। असल मैं उस जिंदगी को जिंदगी नही, बल्कि मौत कहें तो बेहतर है। क्यों कि सचमुच एक लः जीना मौत से कम नही .
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